प्रेम विवाह

नीतिशास्त्र का कथन है:- धन की आमद नित्य बनी रहे शरीर निरोग रहे गृहस्थ आश्रम के लिए सुंदर प्यारी सी जीवनसंगिनी के रूप में पत्नी प्राप्त हो पुत्र का साथ मिले व्यवसाय कारक विद्या का ज्ञान प्राप्त हो तो व्यक्ति का जीवन सदैव सुख से भरा रहता है।। विवाह संस्कार को नीति शास्त्र में गृहस्थ जीवन की एक ऐसी आधारशिला बताया गया है जिस पर आनंद पूर्ण दांपत्य जीवन का भवन निर्मित होता है ज्योतिषीय दृष्टि से विवाह संस्कार को प्रमुखता प्रदान की गई है विवाह के पूर्व जन्मांग का मिलान किया जाता है गुणों का मिलान किया जाता है अष्टकूट मिलान किया जाता है लेकिन प्रयोग के धरातल पर सत्य की छांव में जब मैं देखता हूं की वैवाहिक जीवन में नाना प्रकार की समस्याएं होती हैं संबंध चल नहीं पाते हैं जबकि अष्टकूट मिलान मेलापक द्वारा पूरी तरह से मिल रहा होता है उसके बाद भी वैवाहिक जीवन में सुख शांति आनंद सुचिता पवित्रता के दर्शन नहीं होते हैं देखिए विवाह को देखने के लिए हमें 3 तरह से देखना चाहिए भाव मेलापक नक्षत्र मेलापक ग्रह मेलापक इन तीनों के 33; 33 परसेंट अंक निर्धारित किए गए हैं जब हम नक्षत्र मेलापक से मिलान कर लेते हैं तो हम रिजल्ट में शत प्रतिशत नहीं पहुंच पाते होगी हमारे मेलापक का मानक अधूरा रह जाता है पति पत्नी के सुखद वैवाहिक जीवन को जानने के लिए शुक्र को देखिए मंगल को देखिए लग्न लग्नेश को देखिए सातवें भाव के स्वामी को देखिए सातवें भाव को देखिए विवाह संबंधी स्थितियों का आकलन मिलेगा देखिए । इसके अलावा मंगल की स्थिति पर भी विचार किया जाता है लोग कह देते हैं लग्न भाव चतुर्थ भाव अष्टम भाव द्वादश भाव बैठा हुआ मंगल मांगलिक दोष की रचना करता है मांगलिक दोष मंगल की विभिन्न प्रकार से स्त्री भाव में बैठने की स्थिति मात्र है मंगल गुस्सा एल होता है गुंडा होता है सेनापति होता है क्रोधी होता है जहां पर रहता है वहां पर अपनी रौब को दिखाता है मंगल की प्रवृत्ति जल्दी चलने की होती है जल्दी काम करने की होती है जल्दी से गुस्सा करने की होती है जब इस्त्री भाव में बैठता है कि स्त्रियों को आंखें दिखाता है स्त्रियों को मानसिक शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है इसीलिए इन भाव में मंगल का बैठना उचित नहीं माना गया है अब शुक्र को देखिए यदि शुक्र किसी की कुंडली कमजोर होगा पीड़ित होगा पाप कर्तरी में होगा शत्रु कर्तरी में होगा स्त्री के सुख में कमी करेगा इसी तरह यदि तात्कालिक सप्तमेश पीड़ित हुआ कमजोर हुआ शत्रु कर्तरी में हुआ अस्त हुआ तो स्त्री के सुख में कमी होगी शुक्र और मंगल राहु और केतु से चंद्रमा सनी से जितना कम संबंध बनाएंगे दांपत्य जीवन में उतना ही सुख आएगा शांति आएगी यदि सातवें भाव का स्वामी 6 8 12 भाव में बैठ गया साथ में अनिष्ट भाव के स्वामी के साथ भी बैठ गया तो दांपत्य जीवन का सत्यानाश हो जाता है यदि पति पत्नी के बीच में कोई विच्छेदक गृह बैठ जाता है तो भी वैवाहिक जीवन में कमजोरी आती है मंगल के साथ राहु या चंद्र मंगल राहु या शुक्र चंद्र केतु युति होगी जितने नजदीक अंशों में होगी परेशानी उतनी ही अधिक होती है विवाह करते समय जन्मांक मिलाते समय कम से कम तीन बातों का ध्यान रखना ही चाहिए पति पत्नी दोनों का औसत जीवन 60 साल होना चाहिए संतान के योग होने चाहिए दोनों में विकलांग योग परदाराभिलाषी या चारित्रिक दुर्बलता ए नहीं होनी चाहिए यह तभी संभव हो सकता है जब आप जन्मांग से ग्रह और भाव मेलापक देखकर निश्चित करेंगे वैवाहिक जीवन में कोई बड़ी समस्या नहीं आएगी। अब यह भी देखना चाहिए प्रेमी प्रेमिका का योग तो नहीं है सातवां भाव पत्नी का होता है तीसरा भाव मित्र का होता है पांचवा भाव प्रेम का होता है इनका आपस में संबंध तो नहीं है आकर्षण का कारक प्रेम की अभिव्यक्ति का कारक चंद्रमा होता है जब चंद्रमा का संबंध शुक्र और मंगल से होता है तब प्रेम संबंधों की स्थिति बनती है इन लोगों पर भी आप लोगों को विचार करना चाहिए नक्षत्र मेलापक भाव मेलापक ग्रह मेलापक कराने के बाद ही विवाह का निर्णय करना चाहिए प्रारंभ में जो लोग सजग रहते हैं सावधान रहते हैं शास्त्र के अनुसार निर्णय लेते हैं जीवन में आने वाले बड़े संकटों से विधि के विधान और होनी की प्रबलता को कम किया जा सकता है डूबते हुए व्यक्ति के लिए तिनके का सहारा भी बचने की छोटी सी उम्मीद देता है।

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