संतान सुख

शून्यमपुत्रस्य गृहं, चिरशून्यं नास्ति यस्य सन्मित्रम्। मूर्खस्य दिशः शून्याः, सर्वं शून्यं दरिद्रस्य।। । मृच्छकटिकम् ।*

शून्यमपुत्रस्य गृहं, चिरशून्यं नास्ति यस्य सन्मित्रम्।
मूर्खस्य दिशः शून्याः, सर्वं शून्यं दरिद्रस्य।।
। मृच्छकटिकम् ।*

अर्थात् पुत्रहीन का घर सूना होता है, जिसके अच्छे मित्र नहीं होते उसका चिरकाल शून्य रहता है, मूर्ख की दिशायें शून्य रहती हैं और दरिद्र का सब कुछ सूना रहता है।

आज मैं संतान सुख की बात कर रहा हूं ।

संतान के बिना घर सूना रहता है ,जिस घर में संतान की किलकारी नहीं गूंजती है , वह घर शून्य सा प्रतीत होता है।

इसी प्रसंग में मुझे याद आ रहा है कि एक बार कैलाश पर्वत पर माता पार्वती किसी कार्य में व्यस्त थीं और गणेश जी आंगन में खेल रहे हैं , वहीं पास में कार्तिकेय जी भी खेल रहे हैं , अचानक फिर गणेश जी उठे और कार्तिकेय जी के पास जाकर , उनकी आंखों के पास अपनी उंगली ले जाकर , उनकी आंख में थोड़ा सा स्पर्श करा देते हैं ।इस पर कार्तिकेय जी तुरंत ही गणेश जी के कांन पकड़ कर , नाप लेते हैं ,जिससे गणेश जी चिढ़ जाते हैं और मैया पार्वती से कार्तिकेय जी की शिकायत करते हैं , इतने में पीछे पीछे कार्तिकेय जी भी माता पार्वती से शिकायत करते हैं कि गजानन ने मेरी आंख दुखा दी है । इस तरह की बाल लीलाएं ,बाल चेष्टाएं जीवन के आनंद को बढ़ाने वाली होती हैं‌, जब घर आंगन में बच्चे की किलकारी गूंजती है , तो पूरा वातावरण हर्ष और आनंद से भर जाता है।

आज हम ज्योतिष की दृष्टि से संतान सुख का विचार करते हैं ।

  1. नाड़ी ज्योतिष में संतान का कारक सूर्य होता है। सूर्य संतान के सुख के विषय में दर्शाता है। सूर्य पिता का भी कारक होता है । पांचवा भाव संतान का , शिक्षा का , पेट व हृदय का होता है ।पांचवा भाव देवताओं के आशीर्वाद का , मंत्रणा शक्ति का और संतान से मिलने वाले सुखों के बारे में दर्शाता है। आपको संतान का सुख कितना मिलेगा कब मिलेगा संतान कितनी होगी इसकी संपूर्ण व्याख्या पांचवा भाव, पांचवें भाव का स्वामी पांचवें भाव का नैसर्गिक कारक सूर्य करता है।
  2. सूर्य संतान है ,पुत्र है ,पिता है जब किसी की शादी हो जाती है उसके संतान हो जाती है ,वह भी पिता बन जाता है इसीलिए सूर्य से संतान और पिता दोनों देखे जाते हैं । सूर्य यदि गुरु के साथ बैठता है तो संतान जल्दी होती है ,सूर्य पर यदि गुरु की दृष्टि हो तो भी संतान जल्दी होती है , यदि बृहस्पति पर तात्कालिक रूप से 6, 8 ,12 का प्रभाव नहीं है तो सूर्य पर गुरु की दृष्टि वृद्धि कारक होती है।
  3. यदि पांचवें भाव का स्वामी शुभ स्थिति में होता है पांचवें भाव का स्वामी 6, 8 ,12 भाव में नहीं बैठता है । यदि अष्टम और द्वादश भाव में कोई पापी ग्रह ना बैठा हो तो भी संतान जल्दी हो जाती है 4.यदि पांचवें भाव के स्वामी का संबंध सूर्य के साथ होता है, गुरु के साथ होता है तो संतान बहुत प्रतिष्ठित होती है ।यदि सूर्य का संबंध गुरु के साथ हो तो भी संतान बहुत प्रतिष्ठित और मान अर्जित करने वाली होती है। यदि पांचवें भाव का स्वामी मंगल के साथ बैठ जाता है तो संतान अभिमानी होती है , सीधा और स्पष्ट बोलने वाली , बलवान और गुस्सैल होती है ।
  4. यदि सूर्य का संबंध अथवा पंचम भाव के स्वामी का संबंध शुक्र से होता है तो संतान ज्ञानी होती है, पढ़ने लिखने में बहुत होशियार होती है, खूब धन अर्जन करने वाली होती है। 6.यदि सूर्य का अथवा पांचवें भाव के स्वामी का प्रभाव राहु के साथ होता है तो संतान निम्न स्तर का काम करती है। संतान को नाना प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। संतान शिक्षा में ज्यादा ध्यान नहीं देती है , उसकी संगति भी खराब हो जाती है , संतान को काफी कष्टों का भी सामना करना पड़ता है। 7.यदि पंचम भाव या पंचमेश अथवा सूर्य शनि के साथ बैठा हो संतान सरकार से जुड़ कर काम करने वाली होती है , इसी तरह पंचम भाव के स्वामी का संबंध बुध से जुड़ा हो तो संतान व्यापार करने वाली , शिक्षा ग्रहण करने वाली होती है ।यदि पंचम भाव के स्वामी का संबंध केतु से जुड़ा होता है अथवा सूर्य का संबंध केतु से जुड़ा होता है तो संतान धार्मिक होती है ,बहुत सजने सवरने वाली नहीं होती है , बड़े लंबे बाल और दाढ़ी रखने वाली होती हैं‌ ,यदि संतान पुरुष है । यदि स्त्री है तो धार्मिक पूजा पाठ करने वाली होगी। 8.यदि संतान कारक सूर्य और शनि एक दूसरे के समसप्तक हो जाते हैं तो ऐसे जातकों को अपनी संतान का सुख नहीं मिलता है , उन्हें बुढ़ापे में अपने लिए हमेशा कुछ ना कुछ बचा के रखना चाहिए क्योंकि बुढ़ापे में संतान सेवा नहीं करती है। 9.यदि पांचवें भाव का स्वामी कमजोर होगा, पीड़ित होगा, 6 ,8, 12 भाव में बैठा होगा तो संतान विलंब से होगी।
  5. यदि पांचवें भाव में केतु की दृष्टि होगी , पांचवें भाव में केतु बैठा होगा, सूर्य का केतु के साथ संबंध होगा , सूर्य का शनि के साथ संबंध होगा , सूर्य का राहु केतु के साथ संबंध होगा तो भी संतान देर से होगी क्योंकि सूर्य के आगे राहु केतु शनि का प्रभाव संतान प्राप्ति में विलंब देता है। 11.यदि पांचवें भाव का स्वामी कमजोर पीड़ित हो, पांचवा भाव भी बल हीन हो ,पापी ग्रहों की दृष्टि से पीड़ित हो , सूर्य भी शनि ,राहु जैसे ग्रहों के साथ हो तो ऐसे व्यक्ति को संतान नहीं होती है यह ध्यान रखना चाहिए कि पंचम पंचमेश पर तात्कालिक रूप से किसी शुभ ग्रह की दृष्टि ना हो। (शेष अगले भाग में )। Dr Narendra Dixit Nadi expert and Nadi Teacher 6307437516 9628333618

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