ग्रहों की दृष्टि

नाड़ी ज्योतिष शास्त्र में ग्रह की दृष्टियों के मर्म और उनके सिद्धांत की चर्चा करते हैं । लौकिक जीवन में हमारी कई व्यक्तियों से इशारों इशारों में बात हो जाती है‌ कोई हमारे ऊपर मित्रवत दृष्टि रखता है कोई शत्रुवत रखता है। मित्रवत दृष्टि ग्रह को आत्मबल को देती है।

नाड़ी ज्योतिष शास्त्र में ग्रह की दृष्टियों के मर्म और उनके सिद्धांत की चर्चा करते हैं । लौकिक जीवन में हमारी कई व्यक्तियों से इशारों इशारों में बात हो जाती है‌ कोई हमारे ऊपर मित्रवत दृष्टि रखता है कोई शत्रुवत रखता है। मित्रवत दृष्टि ग्रह को आत्मबल को देती है। शत्रुवत दृष्टि ग्रह को भय अस्थिरता और संघर्ष देती है‌। नाड़ी ज्योतिष शास्त्र में ऋषि यों ने किसी भी ग्रह की पंचम दृष्टि नवम दृष्टि और तीसरी दृष्टि सप्तम दृष्टि की चर्चा परिचर्चा की है। ऋषि पाराशर ग्रह की सप्तम दृष्टि के अतिरिक्त गुरु शनि मंगल की अतिरिक्त दृष्टियों पर भी विचार किया है। संप्रति जातक ग्रंथों में फलित के आचार्यों ने ग्रहों की एक पाद द्वि पाद त्रिपाद दृष्टि का विमर्श किया है। महर्षि पाराशर ने लिखा कोई भी ग्रह जिस बिंदु पर बैठा है वहां से 180 डिग्री पर पूर्ण प्रभाव रखता है। संहिता ग्रंथों में ऋषि यों ने अपनी एक अलग परंपरा अपना एक अलग चिंतन अपने विश्लेषण की एक अलग रीति विकसित की जो कालांतर में नाड़ी ग्रंथों के रूप मे प्रकाशित हुई। उत्तर भारत में भृगु संहिता के नाम से ग्रंथ प्रसिद्ध हुआ। नाड़ी शास्त्रों में विशेषकर भृगु नाड़ी में नंदी नाड़ी में शिव नाडी में ग्रहों की विशेष दृष्टि ओं का वर्णन प्राप्त होता है। किसी भी ग्रह की तीसरी दृष्टि पंचम दृष्टि नवम दृष्टि सप्तम दृष्टि द्वी द्वादश संबंध का वर्णन मिलता है देखिए दृष्टि भी संबंधों का निर्माण करती है। यहां पर हमें संबंध से तात्पर्य ग्रहों की किरणों का आपस में मिलन से समझना है। जिस प्रकार शादी में पति पत्नी मिलते हैं उसी तरह ग्रहों की किरणें भी आपस में मिलकर के एक नया प्रभाव देती हैं ब्रह्मांड को एक नई ऊर्जा देती हैं। और यह ऊर्जा सकारात्मक होगी या नकारात्मक होगी यह देश काल परिस्थिति जातक के प्रारब्ध के कर्मों के अनुसार फलित होती। ब्रह्मांड में जब ग्रहों की रश्मियों का संबंध बनता है। इन रश्मियों का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर अलग-अलग पड़ता है। ग्रह की जो तीसरी दृष्टि होती है वह जीवन में बड़े परिवर्तन लाती है जीवन की दिशा को मोड़ देती है मान लीजिए आपकी कुंडली में सूर्य से तीसरे भाव में राहु बैठा हुआ है। राहु सूर्य से शत्रुता करता है। इसलिए सूर्य के लिए राहु दुश्मन होगा सूर्य के कार्यों में रुकावट देगा लेकिन राहु के लिए सूर्य प्रतिष्ठा देने वाला होगा । यहां पर इस मर्म को समझना है- सूर्य को पिता मान लीजिए पिता के जीवन में परेशानी आएगी पिता के जीवन में रुकावट आएगी पिता को शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा लेकिन राहु से एकादश में सूर्य बैठेगा तो राहु के लिए सूर्य प्रतिष्ठा दायक होगा उच्चता देने वाला होगा तो राहु दादा होता है। जातक का दादा प्रतिष्ठित होगा ‌। इस बात से आपने क्या समझा व्याख्या करते हैं तीसरा भाव आपके कंधों का होता है तीसरा भाव आपके साहस का होता है अगर तीसरे भाव में शत्रु बैठा है आपने साहस के साथ कार्य किया परिश्रम किया तो आप उस उस समस्या से निजात पा लेंगे। ग्रह की जो तीसरी दृष्टि है वह जीवन में बड़े परिवर्तन लाती है तीसरी दृष्टि पर दुश्मन बैठा होगा दुश्मन को आप साहस के द्वारा अपने शारीरिक बल के द्वारा अपनी सूझबूझ के द्वारा आप जीत सकते हैं। यदि मित्र बैठा होगा तो आप अपने जीवन में अनुकूल परिस्थितियों के कारण जल्दी प्रगति करने वाले होंगे। ग्रह की पंचम दृष्टि ग्रह का पंचम भाव पर 70 परसेंट बल के साथ जाना रक्त संबंधों को दर्शाता है अर्थात पांचवी दृष्टि पुत्र के समान सहयोग देने वाली पुत्र के समान रक्षा करने वाली होती है पुत्र के लिए पिता भाग्य का स्वरूप होता है पुत्र बहुत कुछ नहीं कमाता है लेकिन पिता के धन का पूरा सुख भोग पुत्र को मिलता है। जो चीजें हमें गिफ्ट में मिलती हैं उपहार में मिलती हैं । ऐसी वस्तुएं जो बिना प्रयास के मिल जाती हैं ऐसी सफलताएं जो अधिक परिश्रम किए बिना मिल जाती हैं वे भाग्य कहलाती हैं। पुत्र को पिता से जो मिलता है तो उसके भाग्य से मिलता है सुख और दुख हानि और लाभ उसे अपने वंशानुक्रम विरासत से प्राप्त होता है उच्चता और निम्नता भी उसे भाग्य से प्राप्त होती है। क्योंकि जिस वातावरण में उसका जन्म होता है उसी वातावरण के गुण जातक में आने लगते हैं। सावधान ध्यान से मेरी बात को समझना पंचम दृष्टि यदि 2 मित्र ग्रहों के साथ होती है तो जीवन में सफलता उच्चता सूझ बूझ प्रेम शांति सब कुछ प्राप्त होता है। यदि दृष्टि दो नकारात्मक ग्रहों के बीच में हो गई त्रिक भाव के स्वामियों के साथ हो गई बड़े दुखद परिणाम मिलते हैं जीवन में विरोधाभास जीवन में निराशा नीरसता प्राप्त होती है । प्रहलाद और हिरण कश्यप जैसी शत्रुता जीवन में आ जाती है। सूर्य शनि जैसा विरोधाभास दिखाई देता है। ग्रह की पंचम दृष्टि से मिलने वाला कष्ट को भी बौद्धिक बल और ईश्वर की आराधना यज्ञ कर्म अनुष्ठान के द्वारा ठीक किया जा सकता है। पंचम दृष्टि में पुत्र जैसा वात्सल्य देवताओं जैसा अनुशासन दृष्टव्य होता है। ग्रहों की जो नवम दृष्टि होती है एक और नव का संबंध होता है यह तो प्रारब्ध का संबंध होता है धर्म का संबंध होता है जीवन का धर्म से जुड़ाव हो जाता है। ग्रह की नवम दृष्टि हमेशा व्यक्ति को धार्मिक बनाती है सत्कर्म के लिए प्रेरित करती है यदि आप गलत करोगे तो कष्ट दे करके आपको सत्कर्म पर लाती है। किसी भी ग्रह की नवम दृष्टि जन्म जन्मांतर के पापों पूर्ण का निर्णायक प्रभाव देने वाली होती है। नवम दृष्टि में अनुशासन होता है। यदि नवम दृष्टि से कोई भी कष्ट आ रहा है कोई भी परेशानी आ रही है कोई भी बाधा आ रही है उस बाधा का निवारण जल्दी नहीं हो सकता है क्योंकि यह कष्ट पूर्व जन्म के बुरे कर्मों के कारण मिल रहा है। जब तक आपको प्रारब्ध कर्म की स्पष्ट जानकारी संहिता ग्रंथों के अनुसार नहीं होगी तब तक आप इस दृष्टि से मिलने वाले कष्ट का निवारण नहीं कर सकते हैं। नवम दृष्टि यदि मित्र ग्रहों के साथ होती है तो जीवन में बड़े उत्तम और उच्चतम फल प्राप्त होते हैं बिना प्रयास के ही जातक लंबी दूरी की सफलता को प्राप्त करता है यदि नवम दृष्टि किसी पापी ग्रह से आ रही है तो आपके जीवन में विध्वंस देने वाली होगी मान लीजिए आपकी कुंडली में नवम भाव में राहु बैठा हुआ है। राहु की नवम दृष्टि पंचम भाव पर होगी राहु की दृष्टि संक्रामक होगी । राहु संक्रामक दृष्टि ग्रह की रश्मियों को विषाक्त बना देती है। जिसके कारण जातक की बुद्धि पर जातक के प्रेम संबंधों पर जातक के मनोरंजन पर जातक की संतान पर राहु की विच्छेद आत्मक दृष्टि नाना प्रकार के कष्टों को देने वाली होगी इन कष्टों का निवारण प्रारब्ध कर्म के अनुसार ही प्रायश्चित कर्म करने पर होगा। मित्रों बड़ा गहरा चिंतन है ऋषि यों का आज भी उनकी मेघा को मैं साष्टांग दंडवत प्रणाम करता हूं। जब संपूर्ण विश्व को जीवन जीने की शैली का पता नहीं था तब तक हमारे ऋषियों ने ब्रह्मांड के गूढ़ तम राशियों का चिंतन अपनी मेधा के द्वारा प्राप्त कर लिया था। इसको जानने के लिए सूर्य सिद्धांत का मध्यमाधिकार भास्कराचार्य का सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ आपके ज्ञान का पाथेय बन जाएंगे Dr Narendra Dixit Nadi expert and Nadi Teacher 6307437516

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