जब कोई सत्यता अनुभव से होकर गुजरती है तो वह सिद्धांत बन जाती है।जब वह सिद्धांत बनती है तब प्रेरणास्पद हो जाती है जब वह प्रेरणास्पद होती है तब समाज को दिशा देती है। जब समाज को दिशा देती है तब लोकोपकारी हो जाती है। वास्तव में अनुभव ही मनुष्य का सबसे बड़ा गुरु है। अनुभव मनुष्य के निर्णय को पुष्ट करता है। अनुभव मनुष्य को समय के और परिस्थिति के सापेक्ष मिलता है। इन्हीं अनुभवों के आधार पर चिंतन मनन अध्यवसाय से शास्त्रों का उदय हुआ ज्ञान के नये आयाम गढ़े गये। अनुभव से शास्त्रो के उदय के मध्य की यात्रा में गुरु चंद्रमा और बुध ग्रह की महती भूमिका होती है। ये ग्रह जितने तेजस्वी होतेहै उतना ही तेजस्वी चिंतन और व्यक्तित्व होता है। भगवती के चरणाश्रय में बैठकर इतनी शांति और संतोष का अनुभव होता है कि बस अंत:करण से सिर्फ एक हीध्वनि निकलती है जय मां पीतांबरा जय मां पीतांबरा वारी वारी जाऊं माई आपके चरण पखार लू चरण रज को अपने रोम रोम के लगा कर ऐसे उन्मत्त हो जाऊ जैसे सागर की विशाल शतयोजनी लहरों के मध्य कमल पत्र ।ये भगवती का ही मातृत्व प्रेम है आशिर्वाद है पराक्रम है कृपा प्रसाद है जो आप लोगों के समक्ष वाणी के रूप में प्रकट होता है।