बहु कैसी हो
कार्येषु मंत्री करणेषु दासी
भोज्येषु माता शयनेषु रंभा ।
धर्मानुकूला क्षमया धरित्री
सा नारीशक्ति सदैव नम्या ।।
कार्येषु मंत्री करणेषु दासी
भोज्येषु माता शयनेषु रंभा ।
धर्मानुकूला क्षमया धरित्री
सा नारीशक्ति सदैव नम्या ।।
शून्यमपुत्रस्य गृहं, चिरशून्यं नास्ति यस्य सन्मित्रम्।
मूर्खस्य दिशः शून्याः, सर्वं शून्यं दरिद्रस्य।।
। मृच्छकटिकम् ।*

नाड़ी ज्योतिष शास्त्र में ग्रह की दृष्टियों के मर्म और उनके सिद्धांत की चर्चा करते हैं । लौकिक जीवन में हमारी कई व्यक्तियों से इशारों इशारों में बात हो जाती है कोई हमारे ऊपर मित्रवत दृष्टि रखता है कोई शत्रुवत रखता है। मित्रवत दृष्टि ग्रह को आत्मबल को देती है।