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✍गुरुदेव आचार्य डॉक्टर नरेंद्र दीक्षित जी की कलम से✍
राहु भ्रम ,माया , अविद्या, अज्ञान का कारक होता है। अष्टम भाव में राहु की उपस्थिति शुभ नहीं मानी जाती परंतु आध्यात्मिक और कतिपय विशिष्ट क्षेत्रों में राहु सहायक होता है। अष्टम भाव का राहु शारीरिक कष्ट प्रदान करने वाला आयु पोषण करने वाला वैवाहिक जीवन को कष्टप्रद बनाने वाला होता है जातक पारिजात, संकेत निधि, जातक चंद्रिका आदि ग्रंथों में मिथुन राशि के राहु को उच्च माना गया है सांसारिक मामलों में उच्च गत राहु के फल सामान्यतया अच्छे नहीं होते हैं राहु देने में आता है तो छप्पर फाड़ कर दे देता है यदि छीनने में आ गया तो सब कुछ ले लेता है यदि मैं तार्किक रूप से बात करूं तो राहु सांसारिक मामलों में शारीरिक , आर्थिक, पारिवारिक, वैवाहिक सुखों में कमी करता है किंतु आध्यात्मिक मामलों में राहु के फल अच्छे मिलते हैं क्योंकि अष्टम भाव रहस्य का होता है गूढ़ विद्याओं का होता है गोपनीय डामर तंत्र , किडडीश तंत्र का होता है कुंडली जागरण में राहु कुंडलिनी का कारक होता है राहु ही वह चाबी है जब वह मुड़ जाता है तो चेतना आज्ञा चक्र से होते हुए सहस्त्रार चक्र में समाहित हो जाती है अष्टम भाव में स्थित राहु तंत्रिका तंत्र मनोरोग देता है क्योंकि राहु की दृष्टि चतुर्थ भाव पर होती है चतुर्थ भाव का राहु माता का ऋण भार भी देता है वृश्चिक लग्न में जब राहु अष्टम में बैठता है वैवाहिक सुख में कमी करते हुए जीवन साथी से अपेक्षित सहयोग भी नहीं देता है अब मैं इस बात को एक कुंडली के द्वारा स्पष्ट करता हूं यह जातक राजकीय सेवा में अधिकारी है पहला विवाह 1999 में हुआ परंतु सफल नहीं हुआ तलाक हो गया दूसरे विवाह के लिए कई प्रयास किए गए लेकिन सफल नहीं हुआ जातक पिछले 12 15 वर्षों में स्वयं का फ्लैट लेना चाहता है उसमें भी सफलता नहीं मिली एक फ्लैट बुक करवाया 10 वर्ष हो गए अभी तक पजेशन नहीं मिला बैंक लोन की किस्तें लगातार जा रही हैं अब ध्यान से इस कुंडली में देखिए जातक की जन्मपत्रिका में सूर्य के साथ राहु अष्टम भाव पर बैठा है राहु की चतुर्थ भाव पर पूर्ण दृष्टि है चतुर्थ भाव आवास मकान का होता है चतुर्थेश अपने से द्वादश भाव पर बैठा हुआ है शुक्र भी वाहन का कारक होता है शुक्र और बुध की युति है राहु पुनर्वसु नक्षत्र पर स्थित है जिसके कारण वैवाहिक जीवन और संतति सुख में कमी हो रही है पहली पत्नी का कारक शुक्र है जो वृषभ राशि का है सप्तमेश है अष्टमेश शुक्र है सप्तमेश और अष्टमेश की युति होने के कारण वैवाहिक जीवन में अलगाव की स्थिति आती वह शुक्र और बुध को प्रेरित कर रहा है दूसरे विवाह का कारक शनि है अपने भाव से बाहरवे में बैठा है शनि पर अष्टमेश बुध की दृष्टि है शनि के द्वादश भाव पर केतु बैठा हुआ है चंद्रमा भी भाग्येश होकर के बुध से परेशान हैं जिसके कारण भाग्य ने पूर्ण साथ नहीं दिया चंद्रमा नवमेश होकर करके एकादश भाव पर बैठा है राजयोग बना रहा है। जिसके कारण जातक को उच्च स्तरीय नौकरी मिली लेकिन यही चंद्रमा बुध और शुक्र को अत्यधिक पीड़ित कर रहा है अर्थात प्रारब्ध् आड़े आ रहा है भाग्य साथ नहीं दे रहा है। जातक को वैवाहिक और संतति सुख दोनों ही प्राप्त नहीं हुए हैं पंचम भाव पर गुरु स्वग्रही है फिर भी संतान नहीं हुई ध्यान से देखिए संतान का नैसर्गिक कारक नाड़ी ज्योतिष में सूर्य होता है सूर्य राहु के साथ बैठा है अष्टम पर बैठा है इसलिए कमजोर है गुरु मीन राशि का पंचमेंश होकर के पंचम पर बैठा है लेकिन गुरु के दूसरे और द्वादश भाव पर कोई भी ग्रह नहीं बैठा है गुरु के आगे अर्थात छठे भाव पर केतु का स्वामित्व है संतान में रुकावट हो रही है। अगर गुरू को कुंभ राशि पर ले जाते हैं पूर्व जन्म में तो गुरु का संबंध सूर्य राहु से बनता है अर्थात यह व्यक्ति श्रापित है इसको श्राप लगा हुआ है सप्तमेश और अष्टमेश एक साथ बैठे हुए हैं मंगल को देखिए गुरु का संबंध मंगल से है अर्थात यह बड़ा क्रोधी था कर्मठ था अपने सामने किसी की सुनता नहीं था पत्नी को बहुत प्रताड़ित किया जिसके कारण पत्नी चल बसी जिसका कलंक लगा क्योंकि बुध चंद्रमा का योग कलंक का बताता है शुक्र चंद्रमा और बुध से पीड़ित है शुक्र के द्वादश भाव पर केतु का प्रभाव है शुक्र की स्थिति कमजोर होने के कारण यह संकेत करता है यह इस्त्री को लाइक नहीं करता था प्रेम नहीं करता था इस जन्म में स्त्री के लिए दर-दर भटकना पड़ा
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