संदेह की पृष्ठभूमि

✍गुरुदेव आचार्य श्री नरेंद्र दीक्षित जी की कलम से✍
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जब धरती फटने लगती है बारिश की बूंदे उस दरार को समाप्त कर देते हैं वस्त्र फट जाता है धागे के द्वारा सिल दिया जाता है यदि इंसान का दिल फट जाता है उसकी कोई दवा नहीं होती है वास्तव में शक वह जहर है जो जीती जागती जिंदगी को नष्ट कर देता है संदेह की जो उत्पत्ति है मन से होती है। मन के अंदर ही संकल्प और विकल्प उठते हैं। ज्योतिष के द्वारा आज हम जानेंगे किस योग के कारण व्यक्ति का जीवन असंतुलित असंयमित चिंतित तनाव से भरा हुआ होता है। चंद्रमा मन का कारक होता है मन के अंदर ही संदेह और विश्वास की उत्पत्ति होती है। मन के द्वारा जीव शांति आनंद संतोष का अनुभव करता है।बुद्धि विमर्श को देने वाली होती है बुध जो होता है वह बुद्धि का कारक होता है मस्तिष्क का कारक होता है बुद्धि किसी विषय या मत का निश्चय करती है। जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में बुध और चंद्रमा दोनों की युति होती है ऐसे व्यक्ति के जीवन में संदेह अधिक होता है बुध चंद्रमा की डिग्री जितनी समीप होती है जीवन में अशांति , अविश्वास, हताशा , कुछ खोने का डर , असफलता का भय ,जीवन में कुछ नहीं कर पाए , ऐसी प्रतीति बनी रहती है ऐसा व्यक्ति कभी संदेह करता है कि मेरे मित्र मुझे जान से मार डालेंगे , मेरी पत्नी में चारित्रिक दुर्बलता है , नाना प्रकार की कल्पनाओं को सत्य मानते हुए जीवन में विभिन्न प्रकार के कष्टों दुखों परेशानियों निराशा विक्षोभ से पीड़ित रहता है। यदि चंद्रमा का संबंध राहु से मंगल से बुध से हो जाता है इनमें से चंद्रमा नीच राशि का हो गया अष्टम में भी चला गया स्थिति बहुत खतरनाक होती है व्यक्ति टूट जाता है अपने ही विचारों के द्वंद में भंवर विवर में ऐसा हो जाता है उसे अपने जीवन में चारों तरफ निराशा दिखाई देती है। थककर हार कर प्राण तक दे देता है। आत्महत्या के लिए तीसरे और एकादश भाव के स्वामीओं का संबंध मृत्यु कारक ग्रहों से होना जरूरी है। अब आपको प्रमाण दे रहे हैं यह कुंडली है कैसे जातक की जो सरकारी अध्यापक था संभ्रांत परिवार में शादी हुई। पत्नी अच्छी पढ़ी लिखी थी।विवाह हो गया। किंतु विवाह के तुरंत बाद संतान गर्भ में आ गई। शक इस के मन में बैठ गया पूरा जीवन लड़कर के बिता दिया पत्नी ने तलाक न देने की जिद की और पति ने ना रखने की जिद की ।बस अंत हीन दौड़ के केंद्र में केवल संदेह- शक था। इस कुंडली में बुध बुद्धि का कारक है चंद्रमा मन का कारक है बुध चंद्रमा के बीच में 5 डिग्री का अंतर है दोनों की युति है साथ में राहु बैठा हुआ है बुध चंद्र राहु का योग बुध बुद्धि है चंद्रमा मन है राहु भ्रम का कारक है बुद्धि में भ्रम आ गया। सातवें भाव का स्वामी मंगल अष्टम भाव पर बैठा है जिसके कारण पत्नी के सुखों को नष्ट कर रहा है पत्नी का नैसर्गिक कारक मंगल तात्कालिक कारक शुक्र की स्थिति को देखिए। शुक्र छठे भाव में उच्च का होकर के बैठा है। केतु से षडाष्टक योग कर रहा है शुक्र के आगे उसका जो सबसे बड़ा दुश्मन चंद्रमा बैठा हुआ है। शुक्र के पीछे केतु का प्रभाव है नाड़ी ज्योतिष के अनुसार यही स्थिति शुक्र को कमजोर करने वाली है आपको पता होगा षडाष्टक योग में शुक्र छठे भाव पर जब केतु के साथ षडाष्टक करता है तो जीवन को तहस-नहस कर देता है। इसलिए आज भी पति पत्नी में मुकदमा चल रहा है। शुक्र को देखें शुक्र के त्रिकोण में ट्राईन में शनि बैठा हुआ है जो शुक्र को कब्जे में ले रखा है अर्थात शुक्र की जो रुचि है वह मंगल की तरफ न होकर के शनि की तरफ है शनि वक्री होकर के चंद्रमा से भी संबंध बनाता है। समसप्तक होने के कारण राहु , बुध से भी बनाता है एक प्रकार का सन्यास योग भी यहां पर बन रहा है। शनि पंचम भाव का स्वामी है जो संतान की व्याख्या करता है संतान के सुखों को बताता है नैसर्गिक पंचमेश अष्टम भाव में बैठा हुआ है संतान भाव पर केतु की दृष्टि है इसी कारण संतान का कलंक लगा यही विवाह को तोड़ने वाला बना।
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