🌹✍परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री नरेंद्र दीक्षित जी की कलम से🌹✍
संतान हीनता , सरोगेसी आईवीएफ ..ज्योतिष की नजर में
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आधुनिक समय में संतान प्राप्ति की संभावनाएं दिन प्रतिदिन कम होती जा रही हैं हमारे देश में महिला का मां न बन पाना अभिशाप के समान होता है। निस्संतान दंपतियों को सरोगेसी तकनीक, संतान जन्म के विषय में एक उचित माध्यम बनकर उभर रही है। किस व्यक्ति को सेरोगेसी द्वारा संतान प्राप्ति हो सकती है इसको ज्योतिष के द्वारा जाना जा सकता है वास्तव में सेरोगेसी बेबी का तात्पर्य होता है किराए की कोख। आधुनिक समय में यह तकनीक परिवार में खुशियों की किलकारियां लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। जिन लोगों की कुंडलियों में संतान प्राप्ति के योग कमजोर होते हैं पंचम भाव मध्यम रूप से पीड़ित होता है ऐसे लोग संतान प्राप्ति के अपरंपरागत तरीके अपना कर के संतान प्राप्त करते हैं। इस बात को ज्योतिष के द्वारा समझे। अंडाशय ,मासिक धर्म और गर्भावस्था में सबसे महत्वपूर्ण ग्रह चंद्रमा है दूसरा महत्वपूर्ण ग्रह राहु है जो स्त्री के जननांग को बताता है शुक्र वीर्य का कारक होता है स्त्री रज होता है। रक्त और प्रजनन वाले सभी शरीर के तरल पदार्थ चंद्रमा और शुक्र से देखे जाते हैं। शुक्र और चंद्रमा के द्वारा ही स्त्री में हार्मोनअल गड़बड़ी डिंब ग्रंथि का भी अध्ययन किया जाता है। संतान से जुड़ी वंशानुगत बीमारियां जो है वह शनि से देखी जाती है सर्जरी के लिए मंगल-केतु ,चंद्र -मंगल देखा जाता है। सबसे महत्वपूर्ण रूप से राहु का विचार किया जाता है राहु संतान प्राप्ति का अपरंपरागत आई वी एफ इत्यादि प्रक्रिया का कारक ग्रह होता है। संतान का मुख्य कारक ग्रह नाड़ी ज्योतिष के अनुसार सूर्य को माना गया है और पंचम भाव पर अशुभ प्रभाव संतान के लिए बाधा कारक होता है आप लोगों को यह ज्ञात होना चाहिए सरोगेसी विधि में मंगल केतु इंजेक्शन प्रक्रिया का कारक बन जाता है। इसमें पंचम,सप्तम और अष्टम भाव का महत्व होता है विशेष रूप से वृश्चिक राशि का पीड़ित होना बहुत महत्वपूर्ण है शनि का वृश्चिक राशि में होना प्रजनन अंगों से संबंधित बीमारी देता है। जिनकी जन्म कुंडली में संतान देने वाले ग्रह कमजोर होते हैं राहु केतु जैसे ग्रहों का प्रभाव अधिक होता है तब व्यक्ति संतान प्राप्ति के गैर परंपरागत तरीके द्वारा संतान प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं।
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