♦✍परम पूज्य गुरुदेव आचार्य नरेंद्र दीक्षित जी की कलम से✍♦
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तंत्र साधना में योग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ईश्वर के साथ जीवात्मा का मिलन ही योग है योग चित्तवृत्तियों का निरोध है। मन की चंचलता समाप्त हो जाती है तब जातक के जीवन में संतुलन आ जाता है जातक को इंद्रियातीत अनुभव आने लगते हैं योग साधना के द्वारा प्राण इंद्रिय समूह को वशीभूत करने से अष्ट प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है अष्ट प्रकार की सिद्धि प्राप्त करने के लिए चार प्रकार के योग बताए गए हैं एक हठ योग, मंत्र योग और राजयोग, लय योग। योग के आठ अंग होते हैं पतंजलि दर्शन के अनुसार इन्हें अष्टांग योग कहते हैं यम , नियम , आसन , प्राणायाम , धारणा ,ध्यान, समाधि योगी जन और तपस्वी इनकी साधना से ब्रह्मानंद को प्राप्त करते हैं आसन के द्वारा शरीर में दृढता , मुद्राओं में स्थिरता , प्राणायाम द्वारा शरीर में लघुता ,ध्यान धारणा से अपने इष्टदेव का ध्यान उस से साक्षात्कार करना समाधि द्वारा शरीर में शुक्र कुंडलिनी को जागृत किया जाता है यही क्रियाएं जातक को सिद्धि प्रदान करती हैं। इनके द्वारा ही जातक दिव्य दृष्टि को प्राप्त करता है प्राचीन काल में नारद मुनि , अगस्त ऋषि , मार्कंडेय आदि सिद्ध साधक थे। हिमालय की कंदरा में निवास करने वाले योगी जनों के परम आशीर्वाद से हम हिमालय से ही एक ऐसी विधि लेकर आए हैं जो आपके मन मस्तिष्क को जागृत कर देगा आपका मस्तिष्क विकसित हो जाएगा आप उस उच्च अवस्था तक पहुंच जाएंगे जहां पर ज्ञान का शुद्ध स्वरूप निवास करता है सहज सरल पद्धति के द्वारा दिव्य चक्षु का जागरण ध्यान जागृत हो जाएगा। पलक झपकते ही इंद्रियातीत अनुभव को प्राप्त कर लेगा। साधना और सिद्धि के क्षेत्र में आपको सहज सरल ढंग से प्रवेश करा देंगे । अचेतन मन की अनंत शक्तियों से आप का साक्षात्कार होने लगेगा आपका जीवन संतुलित सिद्ध पूज्य और प्रसिद्ध हो जाएगा।
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