राहु और केतु कालचक्र की दो शक्तियां…



🌹✍गुरुदेव आचार्य नरेंद्र दीक्षित जी की कलम से✍🌹
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राहु और केतु कालचक्र की दो ऐसी शक्तियां हैं जो किसी भी ग्रह की ताकत को घटा और बढ़ा सकती है। ग्रह के तीन प्रभाव होते हैं दैहिक दैविक और भौतिक राहु और केतु दैहिक और दैविक रूप से हमेशा कष्ट पहुंचते हैं भौतिक रूप से कभी नुकसान कभी फायदा दिलाते हैं प्रश्न यह है कि राहु केतु की महादशा में राहु केतु का रत्न धारण करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए रत्न धारण का सिद्धांत यह कहता है जिसका भी रत्न आप धारण करेंगे उसे ग्रह की विशेष ऊर्जा आपके जीवन को प्रभावित करेगी।

यह जरूरी नहीं है उस विशेष ऊर्जा का आकर्षण आपके लिए सकारात्मक हो या नकारात्मक हो जब भी कोई ग्रह नुकसान दे रहा है पीड़ा पहुंचा रहा हो उसकी विधि सम्मत शांति करनी चाहिए ना की रत्न धारण करके आगे बढ़ जाना चाहिए । राहु यदि भौतिक होता है तो केतु आध्यात्मिक होता है। राहु जीवन में जहां लालसा देता है केतु वही निराशा देता है। राहु एक कुंडली शक्ति को जागृत नहीं होने देता केतु ऊर्जा को ऊर्जा को ऊर्ध्व गामी बनाता है।

70 वर्ष के बाद राहु की महादशा बहुत खतरनाक होती है पचपन वर्ष के बाद केतु की महादशा शारीरिक रूप से कष्टकारी परिणाम देती है। राहु जब प्रसन्न होता है तब जीवन को मान सम्मान ख्याति से भर देता है केतु जब प्रसन्न होता है संसार में पूजनीय बना देता है। राहु पितृसत्तात्मक होता है केतु मातृ सत्तात्मक होता है केतु प्रजापति का स्वरूप है राहु की महादशा तब सबसे खराब फल देता है जब राहु के त्रिकोण में मंगल और शनि बैठे थे केतु की महादशा तब सबसे दुखद परिणाम देती है केतु के त्रिकोण में शनि और मंगल बैठे हो।

राहु ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से अपनी अतृप्त इच्छाओं को पूर्ति करने का भरसक प्रयास करता है केतु मानसिक होता है भावना प्रधान होता है केतु के पास कोई इच्छा नहीं होती फिर भी ध्यान सबका रखना है एक साधु के जीवन को देखना और संसार के कल्याण में हमेशा लगा रहता है खुद भूखा रहता है दूसरों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार सेवा करता है राहु का दिया हुआ फल कालजयी नहीं होता है केतु का दिया हुआ फल कालजयी होता है‌।

तीसरे भाव बैठा हुआ केतु कमर की परेशानी देता है तीसरे भाव में बैठा हुआ राहु भाइयों की आसमय मृत्यु देता है। सप्तम का बैठा हुआ केतु गैर परंपरागत यौन संबंधों के प्रति जातक को आसक्त बनता है सप्तम का बैठा हुआ राहु स्त्री को या पुरुष को भोगी बना देता है सप्तम का केतू अलगाव अर्श रोगी बनाता है। सप्तम का बैठा हुआ राहु पथरी रोग से पीड़ित करता है। ज्योतिष में जो जितनी गहराई तक जाता है उसे उतना ही मिलता है किताबों से परे जिस ज्ञान को मन की आंखों से अनुभव करोगे तो संसार के रहस्य समझ लो गे।

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