मिथुन लग्न में मंगल छठे भाव का स्वामी होता है एकादश भाव का स्वामी होकर के अकारक होता है षष्ठेश का अष्टम भाव में बैठना विपरीत राजयोग को बनाने वाला होता है। एकादश भाव के स्वामी का अष्टम में बैठना शुभ नहीं माना जाता है। मिथुन लग्न की कुंडली में मंगल छठे भाव का स्वामी और एकादश भाव का स्वामी होता है। वैसे मंगल की अष्टम भाव में स्थिति शुभ फल प्रदान नहीं करती है लेकिन मिथुन लग्न में मंगल अष्टम भाव में आकर के उच्च का हो जाता है। उच्च का मंगल या एकादश भाव के स्वामी का उच्च का होना शुभ फल प्रदान करता है परंतु कुछ निश्चित क्षेत्रों में ही अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। खान खनिज शोध अनुसंधान विज्ञान तकनीकी क्षेत्रों में या विदेशी संस्थानों में विदेश में लाभ की प्राप्ति होती है। छठे भाव के स्वामी का एकादश भाव के स्वामी का अष्टम में बैठना विशेष क्षेत्रों में उन्नति कारक होता है ऐसा जातक अनुसंधान लीक से हटकर काम करने वाला होता है जन्म स्थान से दूर विदेश में काम करने वाला होता है मिथुन लग्न में मंगल उच्च राशि में स्थित होकर के विज्ञान तकनीकी मेडिकल आदि क्षेत्रों में जातक की उन्नति करता है। मिथुन लग्न में बैठा हुआ मंगल को सबसे बड़ा अशुभ प्रभाव जातक के ऊपर आकाशीय विद्युत अक्सर गिर जाती है । इसके अतिरिक्त ज्वलनशील पदार्थों से दुर्घटना इत्यादि भी बनी रहती है पाइल्स के रोग भी बने रहते हैं उत्सर्जन तंत्र से संबंधित रोग भी दिखाई देते हैं। अष्टम भाव में बैठा हुआ मंगल विवाह के उत्तम सुख नहीं देता है। जीवन को संकट से परिपूर्ण बना देता है। प्रमाण स्वरूप एक लेक्चरर की कुंडली पोस्ट कर रहे हैं जिसमें मंगल 6 और 8 भाव का स्वामी होकर के मकर राशि पर स्थित है । जातक का विवाह विलंब से हुआ क्योंकि सप्तम भाव में शनि बैठा है। सनी का सूर्य के साथ संबंध व्यवसाय सरकार से जुड़ गया सनी का बुध के साथ केंद्रीय प्रभाव दशमेश का सनी से संबंध जातक को इंजीनियरिंग कॉलेज का प्रोफेसर बना है उसके बाद भी जातक को को काफी परेशानियों का सामना कर