आदरणीय गुरुदेव डॉक्टर नरेंद्र दीक्षित जी की कलम से
मकर लग्न में अष्टम भाव में राहु की स्थिति शुभ नहीं होती है क्योंकि मकर लग्न में सिंह राशि अष्टम भाव पर होती है अष्टम भाव में बैठा हुआ राहु जीवन में उपद्रव कष्ट रुकावटें परेशानियां देता है। राहु भ्रम दुख कष्ट विस्तार संदेह का कारक होता है राहु का अष्टम भाव पर बैठना जातक के लिए शुभप्रद नहीं होता है। मकर लग्न में बैठा हुआ राहु एक और जहां विवाह में विलंब कर आता है तो दूसरी तरफ दांपत्य जीवन में भी कष्ट देता है क्योंकि सातवां भाग विवाह का होता है आठवां भाव विवाह का धंन भाव होता है। अर्थात वैवाहिक सुख समृद्धि पति पत्नी के व्यक्तिगत रिलेशन का कभी कारक होता है।
अष्टम भावस्थ राहु एक और आकस्मिक और घातक रोग देता है वायरस से जनित रोग वह वृद्धावस्था के जीवन को भी कष्ट पूर्ण बना देता है राहु की पंचम नवम दृष्टि द्वादश और चतुर्थ भाव पर होती है चतुर्थ भाव सुख का होता है द्वादश भाव विदेश का होता है आध्यात्मिक प्रगति का भी होता है ऐसे जातक को पारिवारिक सुख जहां कम मिलता है वही आध्यात्मिक जीवन में उन्नति प्राप्त होती है इसके लिए सूर्य गुरु की स्थिति का शुभ होना जरूरी होता है
१. आज हम प्रमाण स्वरूप एक ऐसे जातक की कुंडली का अध्ययन आप लोगों के सामने दे रहे हैं जिसका जीवन सन्यासी की तरह है भौतिक जीवन में कोई सफलता नहीं मिली ना ही उसके पास परिवार है ना ही रोजगार है और ना ही जीने का कोई मकसद है ना ही उसने पढ़ा ना ही उसका विवाह हुआ अपने बड़े भाई के साथ रहता है गांव में कोई बीमार हो जाए तो उसके अटेंडेंट बनके उसकी सेवा करता है कोई धार्मिक साधु संत आ जाए तो उसकी भरपूर सेवा करता है।
२. मकर लग्न की कुंडली में छः ग्रह अष्टम भाव पर बैठे हुए। पंचमेश शुक्र अस्त होकर के अष्टम भाव में स्थित है जो विद्या अध्ययन विद्या भाव का स्वामी अष्टम भाव में बैठा है जो सूर्य के साथ आकर के अस्त हो गया है । यह व्यक्ति बचपन में क्यों पढ़ नहीं सका इसका विवेचन करते हैं बुध व्यक्ति की विद्या का कारक है। बुध का संबंध जिस प्रकार के ग्रहों से बनेगा व्यक्ति की शिक्षा वैसी ही होगी बुध का अष्टम भाव पर बैठना बुध की कमजोरी होता है। बुध पर चंद्रमा केतु की स्थिति भी बुध को कमजोर कर रही है। जब कभी भी कोई ग्रह अष्टम भाव में कई ग्रहों के साथ बैठ जाता है विशेषकर बुध जो अच्छे के साथ अच्छा बुरे के साथ बुरा होता है जब वह कई ग्रहों के साथ बैठता है तो असमंजस की स्थिति में आ जाता है अर्थात बुद्धि में निर्णय करने की क्षमता चली जाती है।
३. सातवें घर का स्वामी अपने भाव से अष्टम में केतु के साथ बैठा है केमद्रुम योग में बैठा हुआ है शुक्र भी अस्त हो चुका है मंगल भी केमद्रुम योग में बैठा है मंगल का भी बल चंद्रमा केतु के कारण कमजोर हो गया है मंगल यहां पर अकेला पड़ गया है। इस वजह से इसका विवाह नहीं हुआ पिता ने बहुत कोशिश की लेकिन विवाह नहीं कर पाया, पढ़ाने की बहुत कोशिश की बुध के कारण पढ़ नहीं पाया, काम कराने और धंधा कराने की बहुत कोशिश की लेकिन शनि की स्थिति इसको आगे नहीं बढने देगी | सनी के आगे सूर्य, बुध , राहु का प्रभाव काम के प्रति इसको उदासीन कर दिया। अष्टम भाव पर सूर्य गुरु शनि का प्रभाव शनि प्रभाव निस्वार्थ भाव से सेवा करने के लिए प्रेरित करता है देखिए जो व्यक्ति सामाजिक होता है समाज में निस्वार्थ रूप से लोगों की सेवा करता है उस व्यक्ति की कुंडली में गुरु सूर्य का मोक्ष त्रिकोण में होना अवश्य जरूरी होता है जहां गुरु धर्म का कारक होता है सनी कर्म का कारक होता है जीवन में होने वाली प्राप्तियों को बताता है सूर्य- गुरु वाले ईमानदार होते ,दयालु और धार्मिक होते हैं ।
४. अष्टम भाव पर आकर के सनी भी आध्यात्म का कारक बन जाता है जातक की रूचि धर्म -अध्यात्म पर आ जाती है जो लोगों की सेवा करता है समाज से जुड़कर के कार्य करता है चौथा भाव जनता का होता है जनता के सहयोग का होता है चौथे भाव के स्वामी का संबंध किसी भी रूप से दशम भाव के स्वामी के साथ बन जाता है तो जातक लोगों की सेवा करता है छठे भाव जो मूल्यपरक सेवा का होता है किसी की सेवा के बदले नियत वेतनमान मिलता है। चंद्रमा जहां जनता का कारक होता है केतु धर्म अध्यात्म का कारक होता है केतु तपस्या कराने वाला होता है ऐसा व्यक्ति लोगों को सहयोग प्रदान करता है सेवा प्रदान करता है किसी के दुख दर्द में सम्मिलित हो जाता है लेकिन चंद्र और केतु के साथ शनि गुरु सूर्य का संबंध होना चाहिए शनि गुरु सूर्य चंद्र का योग अध्यात्म का उत्तम योग होता है ऐसे जातक धर्म अध्यात्म के क्षेत्र में बड़ा काम करते हैं वैसे भी इस कुंडली में देखिए सन्यास योग है। सातवें घर का फल चंद्रमा केतु अष्टम भाव में बैठने शुक्र का अष्टम भाव में बैठना मंगल का पीड़ित होना नष्ट कर देता है। पांचवें घर के स्वामी का कमजोर होना पांचवी घर पर पाप प्रभाव किसी भी ग्रह की दृष्टि का ना होना संतान सुख से वंचित करता है। शनि का कई ग्रहों के साथ अष्टम में बैठना भी सनी को कमजोर और कर्मों से उदासीन I बना रहा है शनि का राहु गुरु सूर्य चंद्र बुध के साथ बैठना प्रबल सन्यास योग अध्यात्म योग की रचना कर रहा है।
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great guruji sat sat pranam….guruvarji