प्रारब्ध और नाड़ी ज्योतिष

*ज्योतिष शास्त्र काल के गुणधर्म को बताने वाला शास्त्र है *यह शास्त्र कालका प्रमाणिक इतिवृत्त प्रस्तुत करते हुए कालातीत सत्ता के मार्ग का रहस्योद्घाटन करता है समय के गर्भ में सुख छुपा है या दुख छुपा है हानि छिपी है या लाभ छिपा है या मांन छिपा है या अपमान छिपा है यह प्रारब्ध के कर्मों के अधीन होता है हमारे रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है ,,,,,,,,,,,, सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ। हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ॥171 मनुष्य के जीवन में सुख-दुख हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि के हाथ में होता है होनी के हाथ में होता है इसी बात को भगवान श्री कृष्ण ने अपनी ब्रह्म वाणी से कहा हैसुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।

ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।। समय के गुणधर्म की विधि के विधान की काल के संप्राप्ति की और विशद व्याख्या करते हुए गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं ,,,,,,,,,,,,…..
जन्म मरण सुख-दुख सब भोगा। हानि लाभ प्रिय मिलन वियोगा।। कल करम वश होहि गोसाई।। बरबस रात दिवस की नाई।। जन्म मरण सुख दुख हानि लाभ प्रिय मिलन वियोग यह 9 चीजें हैं समय के कारण ही होती है व्यक्ति का जन्म कब होगा यह मनुष्य के अधीन नहीं होता व्यक्ति की मृत्यु मनुष्य के आधीन नही होती है व्यक्ति को अपयश कलंक सुख दुख भी समय के अधीन होता है एक समय में वही व्यक्ति बहुत ऊंचाई पर जाता है दूसरे समय में वही व्यक्ति जेल चला जाता है व्यक्ति के प्रारब्ध कर्मों का किस समय और कहां पर उदय हो जाए यह व्यक्ति के आधीन नहीं होता है यह समय के अधीन होता हैं आप लोगों को पता होगा लग्न भाव से अष्टम भाव तक के फलों पर विधाता का नियंत्रण होता है व्यक्ति के किए गए प्रारब्ध कर्मों का नियंत्रण होता है। मनुष्य ग्रहों से प्रभावित होकर स्वभाव विशेष और गुणों से प्रेरित होकर अपने कर्मों की रचना स्वयं करता है उन्हीं को भोगता है उन्हीं में उलझा रहता है जैसे मकड़ी पहले जाल को बनाती है फिर जाल में* फंस कर के जान दे देती है इसी तरह मनुष्य अपने कर्मों की रचना स्वयं करता है उसी में फंस कर कष्ट दुख अथवा मान सम्मान यश को भोंगते हुए मृत्यु को प्राप्त करता है इसीलिए हमारी ऋषि परंपरा में पुरुषार्थ चतुष्टय के बारे में कहा गया है ज्योतिष शास्त्र भी इसी नियम के अनुसार कार्य करता है ज्योतिष कहता है जब व्यक्ति जन्म लेता है और जब तक मृत्यु को प्राप्त नहीं करता है तब तक उसके नियंत्रण में कुछ नहीं होता है जैसे मैं कहूं आपको संतान किस तरह और कब प्राप्त होगी इस पर आप का बस नहीं चलता है किस परिवार में आपका जन्म होगा इस पर आपका बस नहीं चलता है आपके मित्र कैसे होंगे इस पर आपका बस नहीं चलता है आपके शत्रु कैसे होंगे आपकी पत्नी कैसी होगी आपकी मृत्यु किन परिस्थितियों में होगी यह भी आपकी आधीन नहीं होता है यह परमात्मा और प्रारब्ध कर्मों के अधीन होता है लेकिन मनुष्य के आधीन कर्म होता है धर्म होता है कर्मों का भोग होता है और मोक्ष होता है इसीलिए कहा गया है नवम भाव धर्म है दशम भाव कर्म का है एकादश भाव इच्छा है इसे काम कहते हैं द्वादश भाव मोक्ष है पूरा जीवन इसी के आधार पर चलता है मनुष्य जिस प्रकार के कर्मों को करता है वही कर्म आगे चलकर के प्रारब्ध बन जाते हैं संचित कर्मों में सम्मिलित हो जाते हैं कालांतर में वही संचित कर्म प्रारब्ध बन जाते हैं जिसका फल उसे स्वयं भोगना पड़ता है इसलिए विधि के विधान में प्रारब्ध कर्म के उदय में मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं होता है कब कौन सा कर्म कौन सा प्रारब्ध उदित हो जाए यह समय के आधीन होता है। नीचे लिखे चित्र में विधि के विधान की काल के गुण धर्म की ज्योतिष के अनुसार शास्त्रीय चर्चा की गई है**

2 Comments.

  1. कर्मों के प्रभाव, उदय व प्रारब्ध के बारे में बहुत ग्यान मिला। गुरुजी आपसे बहुत अच्छा ज्ञान मिला हम बहुत आभारी हैं।

  2. बहुत ज्ञान वर्धक जानकारी दी है। साधुवाद।

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