सर्वप्रथम गणेश जी को प्रणाम परम पूज्य गुरुदेव को प्रणाम दोस्तों आपने एक गाना सुना होगा तू मेरा है सनम तू मेरा हमदम तेरे संग जीना सातो जनम परमपिता परमात्मा इन संबंधों को अपनी भाषा में कैसे लिखते हैं या कहें व्यक्ति का भाग्य लिखते समय परमात्मा इन संबंधों को किस तरह लिखते हैं उनकी भाषा को ऋषि मुनियों के मनन को गुरुदेव के अनुभव को ध्यान में रखते हुए अपनी अल्प बुद्धि से विवेचन प्रस्तुत कर रहा हूं दोस्तों उक्त कुंडली में शुक्र और मंगल का आपस में परिवर्तन हैं शुक्र के घर में मंगल मंगल के घर में शुक्र बैठा है दो ग्रह दोनों एक दूसरे के घर पर बैठे हैं वैदिक ज्योतिष में विद्वान लोग इस पर एक परसेंट भी विचार नहीं करते हैं ध्यान से समझिए भगवान को क्या सूझी थी कि किसी एक ग्रह को दो भाव का स्वामी बना देने की जैसे शुक्र दूसरे घर का स्वामी होकर लग्न में बैठा है लग्न का स्वामी मंगल दूसरे भाव में बैठा है दोनों एक दूसरे भाव के स्वामी हुए दोनों अपने पूरे बल और मालिकाना हक के साथ बैठे हैं भगवान ने क्या सोचा होगा जब उन्होंने हैं नवग्रह बनाए थे तो एक दो ग्रह ज्यादा भी बना सकते थे एक ग्रह को दो भागों में आधिपत्य देने की क्या मनसा रही होगी भगवान ने एक ग्रह को 2 भावों का मालिक बनाने के लिए एक अनोखा रास्ता चुना उन्होंने परिवर्तन के द्वारा एक ग्रह को दो भागों का मालिक बना दिया दूसरे ग्रह को भी दो भाव का मालिक बना दिया इस बात को सरल भाषा में ऐसे समझ गए मान लो प्रखर और अंजू के पास एक एक मकान हैं दोनों ने एक समझौते के साथ अपना मकान एक दूसरे से चेंज कर लिया या कहें प्रखर ने अपना मकान अंजू को दे दिया अंजू ने अपना मकान प्रखर को दे दिया या कहें दोनों ने मकान एक दूसरे को किराए पर दे दिया अब अंजू और प्रखर इस मकान की अदला बदली तभी करेंगे जब आपका पूर्व में संबंध रहा होगा तभी यह दोनों अपना घर एक दूसरे को देंगे इन दोनों में से यदि एक ने मकान तोड़ा तो दूसरा कहेगा कि मकान आप ने तोड़ा है आपको ही बनवाना पड़ेगा यदि आपने नहीं बनवाया तो मैं आपके मकान को नुकसान पहुंचा दूंगी रहते हैं दोनों एक दूसरे के मकान की रक्षा करते रहते हैं इसीलिए दोनों ही बलवान रहते हैं यही स्थिति शुक्र और मंगल में होती है शुक्र पत्नी और मंगल पति होता है नाड़ी ज्योतिष के ग्रंथों में ऋषि यों द्वारा ऐसा कहा गया है दोस्तों परिवर्तन में हमेशा ग्रह मजबूत हो जाते हैं ग्रहों का बल और कार्य करने की प्रवृत्ति बदल जाती है परिवर्तन पूर्व जन्म से चलने वाली एक ऐसी साझीदारी है जो अगले जन्म तक चलती रहती है यह महत्वाकांक्षा और अधिकारात्मक संबंध को दर्शाती है जैसे तू मेरा है आगे मेरा ही रहेगा बस यदि कुछ कारणों बस हम तुम नहीं मिल पाये पड़ोसी दोस्त रह गये अगले जन्म में साथ अवश्य रहेंगे ऐसी प्रबल आकांक्षा जब जीव में होती है तभी ऐसे संबंधों को परमात्मा डिजाइन करता है। शुक्र पत्नी मंगल पति का जब परिवर्तन होता है यह दर्शाता है यह दोनों पूर्व जन्म में पति-पत्नी थे दोनों ने साझेदारी की एक दूसरे के मकान को कब्जे में ले लिया ताकि अगले जन्म में कोई तीसरा आकर के पति या पत्नी ना बन जाए अब दोस्तों थोड़ी सी में इस स्थिति को बदलता हूं मान लो मैंने मीन लग्न लेता हूं मीन लग्न में मंगल द्वितीयेश शुक्र तृतीयेश होगा जब शुक्र और मंगल में परिवर्तन होगा यह दर्शाता है आप पूर्व जन्म में मित्र पड़ोसी प्रेमी थे किसी कारण आप नहीं मिल पाए तो आपने पूर्व जन्म में कुछ समझौता साझेदारी देवता के समक्ष अनुनय विनय प्रतिज्ञा की तो आप इस जन्म में पति और पत्नी बने इस जन्म में आपके लड़ाई झगड़े और प्रेम आनंद खुशियां सभी पूर्व जन्म के संबंधों के आधार पर ही घटेगी बढ़ेगी शुक्र मंगल का परिवर्तन 90% पूर्व जन्म से ही पति-पत्नी थे यह बताता है 10 परसेंट यह बताता है कि आप पूर्व जन्म में मित्र पड़ोसी प्रेमी प्रेमिका रहे होंगे किसी कारण से आपका विवाह नहीं हुआ आप एक नहीं हो पाए तो इस जन्म में आप पति पत्नी बने कई बार आप देखते हैं अचानक आपकी किसी से मुलाकात हुई जाति परिवार से भी बहुत दूर है किन्ही कारणों से आपकी शादी हो जाती है संबंध पूर्व जन्म से जुड़े होते हैं यही ज्योतिष का सत्य सिद्धांत है ऐसा हमारे ऋषि यों मुनियों ने अपने अनुभव में पाया है .